poetry by kavi chavi

Saturday, January 2, 2010

jindagi

मेरे जीवन के सुने पन में कुछ धुंधली स्मृतिया शेष

कुछ काँटों की चुभन ओर कुछ पुष्पों के कोमल अवशेष

है एंकात किन्तु सन्नाटे में भी है एक कोलाहल

रह रह क्यों याद है आते बीत गए वो बीते पल

क्यों याद आता है उसका पथ