poetry by kavi chavi

Sunday, January 3, 2010

नेमत

..............जिंदगी .....................

जिंदगी सिगरेट जैसी तो नहीं
ज़िन्दगी कप प्लेट जैसी तो नहीं
ज़िन्दगी का दूसरा है नाम मकसद
ज़िन्दगी कोई भेट जैसी तो नहीं

जोश है तो ज़िन्दगी है दिलरुबा
होश है तो ज़िन्दगी शहनाई है
ज़िन्दगी है सांस के चलने ही तक
बाद मरने के किसे मिल पाई है

कोई लिखकर कोई दे उसको मिटा
ज़िन्दगी इक स्लेट जैसी तो नहीं
ज़िन्दगी सिगरेट जैसी तो नहीं......

ज़िन्दगी बूढ़े की आँखों की जवानी
ज़िन्दगी सूखे हुए दरिया का पानी
ज़िन्दगी रूठे हुए बच्चे की ख्वाहिश
ज़िन्दगी बस ज़िन्दगी जैसी कहानी

ज़िन्दगी इस छोर से उस छोर तक है
ज़िन्दगी बंद फ्लेट जैसी तो नहीं
ज़िन्दगी सिगरेट जैसी तो नहीं .......

मौत से हर शक्ल में आसान है जीना
जी के देखो ज़िन्दगी फिर चूमती है
सर्द रातों और तपती धूप में ही
मुस्कुराती ज़िन्दगी फिर झूमती है

ज़िन्दगी के रास्ते सब के लिए हैं
ज़िन्दगी घुसपेठ जैसी तो नहीं
ज़िन्दगी सिगरेट जैसी तो नहीं ।

०४/०१/२०१०



यादें

मेरे मन के सूनेपन में कुछ धुंधली स्म्रतियां शेष
कुछ काटों की चुभन और कुछ पुष्पों के कोमल अवशेष

है एकांत किन्तु सन्नाटे मैं भी हे इक कोलाहल
रह रह कर क्यों याद हैं आते बीत गए वो बीते पल
क्यों याद आता है उसका पथ पर मिलना फिर थम जाना
नैनो से अभिनन्दन करना नैनो से ही शर्माना
क्यों याद आता है उसका छत पर बालों को झत्काना
क्यों याद आता है उसका आती हूँ कह कर खो जाना
क्यों याद आता है उसका ऊँगली में आँचल को कसना
और मेरी बातो को सुन पागल कह कर खुल कर हसना
भूल जाओ मुझ को, कह कर उसका वो रोना याद आता
और जहां मिलते थे हम वो बाग़ का कोना याद आता
यांदें ...यादें ...यादें ही अब शेष रही सुने मन में
ठहर गए इस नीरस जीवन के नीरस सूनेपन में ।

०४/०१/२०१०

अमरता

.............न जाने क्यूँ आज वो फिर याद ...बहुत याद आया ....

................अमरता ...............

तुम्हे पाना और तुम्हे खोना
दोनों एक ही घटना थी
और इस घटना के बीच था
इक स्पर्श
सम्वेदनाओ का
इक आकार
कल्पनाओ का .......
इक मिलन
दो आत्माओ का
मैंने तुम्हे यू ही तो नहीं
खिंच लिया था अपनी बाँहों में
तुमने भी अपने सर को
यू ही नहीं रख छोड़ा था
मेरे काँधे पर
और फिर यू ही तो नहीं हुआ था
मौन वार्तालाप
ठहरे हुए समय के
थमे हुए छड़ों में
था इक विश्वास
की हम हो गए हैं
एक  आकाश
धरती की सीमाओं / वर्जनाओ से परे
एक  आकाश.......
और तभी हुआ था आभास
की मिटना धरती का भाग्य है
अमरता आकाश का सौभाग्य....

०४/०१/२०१०

path

...........पथ .......................

वह उदास सा निर्जन पथ
आता है कंहा से ज्ञात नहीं
जाता किस और है ज्ञात नहीं
क्या है उसका इतिहास विगत

वह उदास सा निर्जन पथ .....

पगचिन्हों का अवशेष लिए
वह अर्थ स्वयं के खोज रहा
या आहट पहचाने पग की
सुनता है मौन प्रतीक्षारत

वह उदास सा निर्जन पथ ......

इक गाँव कभी था आसपास
कुछ बाग़ और पोखर भी थे
इक बुदिया अपने लाठी पर
थामे थी वन, नदियाँ ,पर्वत

वह उदास सा निर्जन पथ .......

थे कभी लगे मेले इसके
इस ओर और उस ओर रहे
ढोलक , म्रदंग , शमशीरों की
नित नित सुनता था यह आहट

वह उदास सा निर्जन पथ ......

वह पथ है उसकी आँखों में
पथरीले आंसू बहते हैं
निज भाग्य और दुर्भाग्य भरी
गत विगत कथा को कहते हैं

अब गाँव नहीं अब बाग़ नहीं
पोखर बुदिया तालाब नहीं
निर्जन पथरीले इस पथ पर
अब सन्नाटा करता स्वागत

वह उदास सा निर्जन पथ
आता है कहाँ से ज्ञात नहीं
जाता किस ओर है ज्ञात नहीं
क्या है उसका इतिहास विगत ।

०४/०१/२०१०

aasha

................उल्लास ...............

जीवन में उल्लास जरुरी

कोई अपना पास जरुरी

धरती के अस्तित्व के लिए

होता है आकाश जरुरी



स्वप्न भले ही झूटे हो पर

स्वप्न चाहिए आँखों में

समय चक्र का पथ अनिश्चित

दृढ निसचै हो बातो में

मीलो तक चलते जाना हो

तो एक छड अवकाश जरुरी

जीवन में उल्लास जरुरी
कोई अपना पास जरुरी ......

आहत मन की तुलना में
हर शब्द अधुरा होता है
किन्तु मौन अधरों का
अपने अर्थ कभी न खोता है
लहरों की व्याकुलता का
होता है आभास जरुरी

जीवन में उल्लास जरुरी
कोई अपना पास जरुरी .....

दुःख मानव की नियति नहीं है
सुख भी अंतिम सत्य नहीं
जीवन के इस महामंच में
होता है नेपथ्य नहीं
कल्पनाओ को बांध सके जो
ऐसा कोई पाश जरुरी

जीवन में उल्लास जरुरी
कोई अपना पास जरुरी
धरती के अस्तित्व के लिए
होता है आकाश जरुरी ।

०४/०१/२०१०