poetry by kavi chavi

Sunday, January 3, 2010

path

...........पथ .......................

वह उदास सा निर्जन पथ
आता है कंहा से ज्ञात नहीं
जाता किस और है ज्ञात नहीं
क्या है उसका इतिहास विगत

वह उदास सा निर्जन पथ .....

पगचिन्हों का अवशेष लिए
वह अर्थ स्वयं के खोज रहा
या आहट पहचाने पग की
सुनता है मौन प्रतीक्षारत

वह उदास सा निर्जन पथ ......

इक गाँव कभी था आसपास
कुछ बाग़ और पोखर भी थे
इक बुदिया अपने लाठी पर
थामे थी वन, नदियाँ ,पर्वत

वह उदास सा निर्जन पथ .......

थे कभी लगे मेले इसके
इस ओर और उस ओर रहे
ढोलक , म्रदंग , शमशीरों की
नित नित सुनता था यह आहट

वह उदास सा निर्जन पथ ......

वह पथ है उसकी आँखों में
पथरीले आंसू बहते हैं
निज भाग्य और दुर्भाग्य भरी
गत विगत कथा को कहते हैं

अब गाँव नहीं अब बाग़ नहीं
पोखर बुदिया तालाब नहीं
निर्जन पथरीले इस पथ पर
अब सन्नाटा करता स्वागत

वह उदास सा निर्जन पथ
आता है कहाँ से ज्ञात नहीं
जाता किस ओर है ज्ञात नहीं
क्या है उसका इतिहास विगत ।

०४/०१/२०१०

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