poetry by kavi chavi

Sunday, January 3, 2010

यादें

मेरे मन के सूनेपन में कुछ धुंधली स्म्रतियां शेष
कुछ काटों की चुभन और कुछ पुष्पों के कोमल अवशेष

है एकांत किन्तु सन्नाटे मैं भी हे इक कोलाहल
रह रह कर क्यों याद हैं आते बीत गए वो बीते पल
क्यों याद आता है उसका पथ पर मिलना फिर थम जाना
नैनो से अभिनन्दन करना नैनो से ही शर्माना
क्यों याद आता है उसका छत पर बालों को झत्काना
क्यों याद आता है उसका आती हूँ कह कर खो जाना
क्यों याद आता है उसका ऊँगली में आँचल को कसना
और मेरी बातो को सुन पागल कह कर खुल कर हसना
भूल जाओ मुझ को, कह कर उसका वो रोना याद आता
और जहां मिलते थे हम वो बाग़ का कोना याद आता
यांदें ...यादें ...यादें ही अब शेष रही सुने मन में
ठहर गए इस नीरस जीवन के नीरस सूनेपन में ।

०४/०१/२०१०

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