poetry by kavi chavi

Sunday, January 3, 2010

अमरता

.............न जाने क्यूँ आज वो फिर याद ...बहुत याद आया ....

................अमरता ...............

तुम्हे पाना और तुम्हे खोना
दोनों एक ही घटना थी
और इस घटना के बीच था
इक स्पर्श
सम्वेदनाओ का
इक आकार
कल्पनाओ का .......
इक मिलन
दो आत्माओ का
मैंने तुम्हे यू ही तो नहीं
खिंच लिया था अपनी बाँहों में
तुमने भी अपने सर को
यू ही नहीं रख छोड़ा था
मेरे काँधे पर
और फिर यू ही तो नहीं हुआ था
मौन वार्तालाप
ठहरे हुए समय के
थमे हुए छड़ों में
था इक विश्वास
की हम हो गए हैं
एक  आकाश
धरती की सीमाओं / वर्जनाओ से परे
एक  आकाश.......
और तभी हुआ था आभास
की मिटना धरती का भाग्य है
अमरता आकाश का सौभाग्य....

०४/०१/२०१०

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