.................मान-चित्र .............
ये धरती, पूरी दुनिया /एक ही है
इसी विश्वास के साथ
सामने दीवार पर टंगे/विश्व मान चित्र पर
समझा रहा था उन्हें सीमाओं के संकोच
बता रहा था देशों के बारे में
जैसे की यू एस ए क्यूं कम बोलता है
और किस तरह उसके इशारे
धमकी की तरह हो जातें है /बाकी दुनिया के लिए
की किस तरह सोवियत संघ विखंडित हो कर
रूस भर रह जाता है
और क्यु हमारे मुल्क की सियासत
लालीपॉप,गोलगुप्पे नुमा हो गई है
मै समझा रहा था ये सब की अचानक ...
विश्व मान चित्र के मध्य
उभर आया वही चेहरा / जो कल दिखाई दिया था /भरी दोपहर में
शहर के आधुनिकतम बाज़ार में
बोझा ढोते ...
या शायद ...
पत्थर तोड़तें किसी राह पर
या फिर शायद /किसी छायाहीन वृक्ष तले
हथेली पर रखे गिनती भर रुपयों को घूरता
मरे हुए स्वप्नों को लात मार
गिनती भर जरूरतों में भी/ किसी एक जरुरत का चुनाव करता
हाँ ...वही चेहरा ...
अपने स्वाभाविक तनाव ...
आहत संकोच ...
पराजय की पीड़ा /अंत की दुश्चिंता लिए
था इस समय विश्व मानचित्र पर उभर आया
मानो कहना चाहता हो ...
अमेरिका ,रूस ,ब्रिटेन
चीन, भारत ,पाकिस्तान
न्यू यार्क,लन्दन,दिल्ली,करांची
और ...और ...और................
मर्डोक, टाटा, बिडला,अम्बानी
और ...और ...और ...
सब कुछ बताने के बाद
थोडा बहुत बताना हमारे बारे में
...आँखों से देखा हुआ
...क्युकि हम विश्व मान चित्र पर नहीं है
कहीं नहीं है ...........................................||