.....................बस यूँ ही ...............................
चंद शक्लों ने ही नफ़रत की फसल बोई है
अनगिनत शक्ल मोहब्बत की अजां देती है
बम ,बारूद ,धमाके,ये वहशियाना जूनून
भूल लम्हात की सदियों को सजा देती है
माँ सुला पाई है मुश्किल से नन्हे बच्चे को
वक़्त की सिसकियाँ फिर-फिर से जगा देती है
है सियासत की भी हर बात निराली यारों
तीलियाँ बाँट कर शम्मा को बुझा देती है ...||
१२/०४/2011
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