............सरहद .....................
जहाँ कभी होती थी चर्चा
गाँव की नई बहू सुन्दर है /परिश्रमी है
या नए ढंग के खुले पन के साथ
थोड़ी फूहड़ ...
अब नहीं होती चर्चा
रहता है एक मौन /अपनी गंभीरता के साथ
वो चौपाले जो किया करती थीं
सही और गलत के बीच फर्क
अब भी होता है शोर /लम्बी बहस
अर्थ हीन अर्थो के साथ
खेत खलिहानों में
रहती है बैचेनी
अनियंत्रित असय्न्मित बादलों को देख कर
की हवाएं अब पहले सा स्पर्श नहीं करती
कोयल की कूक /जा बैठी है
कोए के गले में ...
अब हर चूल्हे पर
रखी है एक हांड़ी
पक रहें है जिसमे
चिन्ताओ से उभरे कुछ प्रश्न
और यह डर ...
की निगलता जा रहा है शहर
गाँव की सरहदों को ............//
जहाँ कभी होती थी चर्चा
गाँव की नई बहू सुन्दर है /परिश्रमी है
या नए ढंग के खुले पन के साथ
थोड़ी फूहड़ ...
अब नहीं होती चर्चा
रहता है एक मौन /अपनी गंभीरता के साथ
वो चौपाले जो किया करती थीं
सही और गलत के बीच फर्क
अब भी होता है शोर /लम्बी बहस
अर्थ हीन अर्थो के साथ
खेत खलिहानों में
रहती है बैचेनी
अनियंत्रित असय्न्मित बादलों को देख कर
की हवाएं अब पहले सा स्पर्श नहीं करती
कोयल की कूक /जा बैठी है
कोए के गले में ...
अब हर चूल्हे पर
रखी है एक हांड़ी
पक रहें है जिसमे
चिन्ताओ से उभरे कुछ प्रश्न
और यह डर ...
की निगलता जा रहा है शहर
गाँव की सरहदों को ............//