poetry by kavi chavi

Wednesday, January 6, 2010

चिट्ठी

......चिट्ठी ..............

हमने नहीं लिखी चिट्ठी
बहुत दिनों से /एक दूसरे को
नहीं हुआ ...
शब्दों का व्यापार भी
हमारें बीच /बहुत दिनों से ...
याद है /उसने लिखा था
अपनें अंतिम पत्र में
की क्यूं नहीं लिखता मैं
कोई कविता /पत्र के अंत में
उसे यह भी शिकायत थी
की मैं जानबूझकर /नहीं देता
अपने पत्र को विस्तार ...
मानता हूँ
जायज़ है उसकी शिकायत
फिर भी नहीं चाहता ...
आ खड़ा हो /एक सच
हमारे बीच ...
अब हम /शब्दों के भीतर नहीं
शब्दों के बीच आ चुके अन्तराल में हैं ...//
०६ /०१/ २०१०

देह

.....देह ..............

मैंने कभी नहीं चाहा
की स्पर्श करूँ
मौन अधरों को तुम्हारे
चूम लूँ आभा युक्त /ललाट को
या की तुम्हारी गति के साथ लयबद्ध
तुम्हारें वाचाल वछों को ...
तुम्हारें बालों की घनी छाया में
शांत करूँ मन की व्याकुलता /मैंने यह भी नहीं चाहा
....किन्तु हमारे बीच
सदैव ही रहा
हमारे शरीरों का व्याकरण
अंगो के शब्द कोष
और ...
उनसें झरता रहा
एक वाक्य
की हम रहेंगे सदैव ही /अपरिचित
संवेदना के धरातल पर .......
............................................./
०६ /०१/२०१०



स्वप्न गीत

.......................स्वप्न-गीत ……….

स्वप्न तुम्हारा नयनों में है समय से कह दो थम जाये
रात रहे आँचल फैलाये सुबह से कह दो न आये
स्वप्न तुम्हारा ............

देख तुम्हारा मौन निमंत्रण मौन बन गया गीत मधुर
अंगो की वीणा से मुखरित होता है संगीत मधुर
तुम हंस दो तो वायु की निष्प्राण मधुरिमा मुस्काए
स्वप्न तुम्हारा ............

दूर छितिज के लाखों तारों का स्वीकारो अभिनन्दन
नदियाँ की लहरों पर कंपित चंदा का व्याकुल क्रंदन
कंपित अधरों नत नयनों से कह दो अब ना शर्माए
स्वप्न तुम्हारा ............

आओ त्याग देह की बाधा मन से मन का आलिंगन हो
भावों की सरिता में उठती पावन लहरों का संगम हो
आ मेरे जीवन को अर्थ दो जीवन मेरा व्यर्थ न जाये
स्वप्न तुम्हारा नयनों में है समय से कह दो थम जाये
रात रहे आँचल फैलाये सुबह से कह दो ना आये ।
०६ /०१/२०१०