poetry by kavi chavi

Wednesday, January 6, 2010

स्वप्न गीत

.......................स्वप्न-गीत ……….

स्वप्न तुम्हारा नयनों में है समय से कह दो थम जाये
रात रहे आँचल फैलाये सुबह से कह दो न आये
स्वप्न तुम्हारा ............

देख तुम्हारा मौन निमंत्रण मौन बन गया गीत मधुर
अंगो की वीणा से मुखरित होता है संगीत मधुर
तुम हंस दो तो वायु की निष्प्राण मधुरिमा मुस्काए
स्वप्न तुम्हारा ............

दूर छितिज के लाखों तारों का स्वीकारो अभिनन्दन
नदियाँ की लहरों पर कंपित चंदा का व्याकुल क्रंदन
कंपित अधरों नत नयनों से कह दो अब ना शर्माए
स्वप्न तुम्हारा ............

आओ त्याग देह की बाधा मन से मन का आलिंगन हो
भावों की सरिता में उठती पावन लहरों का संगम हो
आ मेरे जीवन को अर्थ दो जीवन मेरा व्यर्थ न जाये
स्वप्न तुम्हारा नयनों में है समय से कह दो थम जाये
रात रहे आँचल फैलाये सुबह से कह दो ना आये ।
०६ /०१/२०१०

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