poetry by kavi chavi

Wednesday, January 6, 2010

देह

.....देह ..............

मैंने कभी नहीं चाहा
की स्पर्श करूँ
मौन अधरों को तुम्हारे
चूम लूँ आभा युक्त /ललाट को
या की तुम्हारी गति के साथ लयबद्ध
तुम्हारें वाचाल वछों को ...
तुम्हारें बालों की घनी छाया में
शांत करूँ मन की व्याकुलता /मैंने यह भी नहीं चाहा
....किन्तु हमारे बीच
सदैव ही रहा
हमारे शरीरों का व्याकरण
अंगो के शब्द कोष
और ...
उनसें झरता रहा
एक वाक्य
की हम रहेंगे सदैव ही /अपरिचित
संवेदना के धरातल पर .......
............................................./
०६ /०१/२०१०



No comments:

Post a Comment