poetry by kavi chavi

Wednesday, January 9, 2013

"नहीं आदरणीय नवल जी ...यह मात्र पढने में कोई मात्रात्मक दोष नहीं था ....यह एक पाठक का नैतिक ,वैचारिक अपराध है ...यदि मै  बतौर पाठक आपको पहले से पढता रहा हूँ ...आपकी रचनाओ में आपकी छवि गढ़ता रहता हूँ तो यह अपराध अक्षम्य है .....हिन्द या हिन्दू के संशय में ...बतौर रचनाकार /पाठक आपकी निष्पक्षता को  भूल बैठा ...आपकी गंभीर तटस्थता को भूल बैठा .....माँ  वीणा वादिनी .....मन को शांति दे ...स्थिरता दें ....मुझे क्षमा करें ........सादर ............."