"नहीं आदरणीय नवल जी ...यह मात्र पढने में कोई मात्रात्मक दोष नहीं था ....यह एक पाठक का नैतिक ,वैचारिक अपराध है ...यदि मै बतौर पाठक आपको पहले से पढता रहा हूँ ...आपकी रचनाओ में आपकी छवि गढ़ता रहता हूँ तो यह अपराध अक्षम्य है .....हिन्द या हिन्दू के संशय में ...बतौर रचनाकार /पाठक आपकी निष्पक्षता को भूल बैठा
Wednesday, January 9, 2013
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