आदरणीय शुक्ल जी .....ये आपके मौलिक चिंतन /शैली विशेष पर पूर्ण अधिकार का ही कमाल है .....मैं बिना आपकी तस्वीर देखे /नाम पढ़े इस अनूठी रचना को पढ़ गया .....असीमित आनंद के साथ ही मात्र चार पंक्तियाँ पढ़ते ही दिमाग में आपका चेहरा और नाम कौंध उठा ...." अरे, यह तो हमारे शुक्ल जी का ही सृजन हो सकता है ....मन बोल उठा "........काव्य की इस विद्या में आपका जो नियंत्रण है ....वह माँ वीणा-वादिनी की ओर से आपको निमंत्रण है ...आप एक बहुत लम्बी यात्रा के पथिक है ...थके नहीं ....रुके नहीं ....ह्रदय से शुभकामनाएं ....सादर .....
Saturday, January 19, 2013
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