poetry by kavi chavi

Wednesday, January 20, 2010

मासूमियत

...........मासूमियत .................

मैं नहीं समझता
की पाप होता है
मंदिर के सामने से गुजरते
सिर न झुकाना
या सड़क पर पड़ी मृत देह को
भीड़ की शक्ल में घेर
संवेदना प्रकट न करना
...मैं यह भी गलत नहीं समझता
की बच कर निकल जाया जाये
उन लोगों से /जो मांगते है
थोडा सा वक़्त ...
कुछ शब्द ...
कोई आश्वासन ...
मैं समझता हूँ /कुछ गलत है
कोई पाप है /तो बस ...
किसी बच्चे की बच्ची मुस्कराहट को
सख्त बूढी आँखों से देखना
उनके पैरों को थपथपाना
और बताना ...
की ज़मीं पथरीली और ठोस है
की स्वप्न देखना मुर्खता है
की स्वप्न सच नहीं होते ......//

२०/०१ २०१०

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