poetry by kavi chavi

Friday, January 22, 2010

कवी

.......कवी ................

उसे ज्ञान नहीं था
प्रतीकों का
बिंब क्या होतें हैं
वह जानता ही न था
शब्द चयन अथवा काव्य विन्यास
जैसी बातें सुनकर
वह केवल हंस सकता था
पूरी तरह मुर्खता पूर्ण हसीं ...
फिर भी ...
जो कुछ भी वह कह रहा था
वह सच था /उसके चेहरे पर लिखा हुआ
आस्था ,विश्वास ,स्वप्न
उत्साह ,चेतना ,और कुछ नहीं
कुछ भी नहीं ...
वह बता रहा था /किस तरह
खुशियों को परहेज रहा उससे
...स्वप्न कभी उत्सव नहीं बन पाए
और मातम बैठा रहा
सदियों की परिचय गाथा लिए
किसी भविष्य वक्ता की तरह ...
की किश तरह /अंधेरों ने ही बताया
प्रकाश जैसी किसी चीज का नाम
की ईश्वर निश्चित ही
विकलांग और नेत्रहीन है
वह बता रहा था यह सब
और मैं महसूस कर रहा था
की कोई अकवि /अनंत काल का
अँधेरी कंदराओं में बैठ
दीर्घ नि :श्वासों के बीच
सुना रहा है कोई कविता ...
निश्चित ही वह कवी नहीं था ...//
२२ /०१/२०१०

No comments:

Post a Comment