.............एकांत .........................
"शांत उपवन हो या हो एकांत निर्जन
कोई छड हो मन नहीं विश्राम पाता
याद आता मौन अधरों का तुम्हारें
और कभी चेहरा तुम्हारा मुस्कुराता
शांत उपवन हो .............................
दृश्य धूमिल ही सही ,जीवित सभी हैं
शब्द विस्तृत अर्थ ले आतें अभी हैं
खो गए सामीप्य के हों पाश पावन
शेष ,किन्तु प्रेम की व्याकुल नदी है
स्वप्न का नयनों से हो चाहे अपरिचय
आ ह्रदय में स्वप्न जीवन को जगाता
शांत उपवन हो ...............................
रात्रि की निस्तब्धता में चाँद भी कल
था मेरी ही भातीं अस्थिर और चंचल
थे छितिज पर चमकते नयना तुम्हारे
श्रृष्टि पर फैला हुआ था क्लांत आँचल
दृष्टि भ्रम या सत्य ही भ्रम बन गया था
था तुम्हारे स्वर में कोई गुनगुनाता
शांत उपवन हो ............................//......प्रेमप्रदीप
"शांत उपवन हो या हो एकांत निर्जन
कोई छड हो मन नहीं विश्राम पाता
याद आता मौन अधरों का तुम्हारें
और कभी चेहरा तुम्हारा मुस्कुराता
शांत उपवन हो .............................
दृश्य धूमिल ही सही ,जीवित सभी हैं
शब्द विस्तृत अर्थ ले आतें अभी हैं
खो गए सामीप्य के हों पाश पावन
शेष ,किन्तु प्रेम की व्याकुल नदी है
स्वप्न का नयनों से हो चाहे अपरिचय
आ ह्रदय में स्वप्न जीवन को जगाता
शांत उपवन हो ...............................
रात्रि की निस्तब्धता में चाँद भी कल
था मेरी ही भातीं अस्थिर और चंचल
थे छितिज पर चमकते नयना तुम्हारे
श्रृष्टि पर फैला हुआ था क्लांत आँचल
दृष्टि भ्रम या सत्य ही भ्रम बन गया था
था तुम्हारे स्वर में कोई गुनगुनाता
शांत उपवन हो ............................//......प्रेमप्रदीप
nice your thought is very deep and imosional
ReplyDeletevarunendra pandey
chachu really grt words u have used in ur poem
ReplyDeletei can't xpress my feeling after reading tht