poetry by kavi chavi

Friday, January 11, 2013

" आदरणीय विनोद जी ...आदरणीय नवल जी सत्य कहा ...."यह मेरा आक्रोश नहीं ...बतौर पाठक मेरा क्षोभ है ....एक समृद्ध रचनाकर की ....साथी रचना के प्रति ........मैं थोडा स्पष्ट करता हूँ ......" आप जिस विषय पर खंड-काव्य लिखने चाह रहे हैं ...वह सर्वव्यापी है ...यत्र-तत्र -सर्वत्र ....मानवीय  सभ्यता ने  नए-नए सोपान रचे ....नए-नए क्षितिज गढ़े ....बहुत तरक्की की ....लेकिन ....लेकिन ...भूख ,ग़रीबी ,लाचारी ,असमानता दानवीय विकृतियों को दूर नहीं कर सका ...सरकारी प्रपत्रों /अखबारों /आंदोलनों में बस यह एक आंकड़ा आधारित नारा  भर रह जाता है ...नारों में सतही  उत्साह ...क्षणिक उत्तेजना ...विचारहीन आक्रोश .....
भूख बिलबिलाती रहती हैं ....हम रोटी के वादों /दावो का दम भरते रहते हैं ...ऐसा ही होता रहा है 

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