"आदरणीय .....सिन्हा साहब ,नवल जी ,संध्या जी ,निशा जी ,सपन सर ,नन्दन जी ....
आदरणीय संध्या जी ने कितनी सुन्दर ,सार्थक बात कही ..."दर असल ये मार्मिक घटनाएं शब्दों से परे हैं .....गहराई से इनका एहसास तन और मन की चूलें हिला कर रख सकता है .....और ये एहसास जब सचमुच हमारे हर कोश में जा कर जड़ें जमायें ...तब जो शब्द फूटेगें तब वो शायद इन घटनाओं के थोड़ा समीप आ सकें "....निःसंदेह तब जो कविता उत्पन्न होगी वह ...वह क्षणिक प्रयास भर न हो कर कालातीत होगी ...नमन आदरणीय संध्या जी के इन सुन्दर विचारों को .......
आदरणीय सपन सर ने सहज ही गंभीर सत्य कह दिया " यह संवेदनशीलता और निष्ठा और कर्तव्य परायणता नहीं होती ... बस लिखने के लिए लिखना अनावश्यक है ..." सच है ...लिखना बाध्यता नहीं होना चाहिए ...न ही प्रयास मात्र .....रचना को अपने अंतस में भ्रमण करने लिए अवसर देना आवश्यक है ...जिससे की संवेदनात्मक बोध लिये ... उचित शब्द आवरण में .....भावों की गहनता के साथ ....कविता स्ययम प्रस्तुत होने को आतुर हो उठे ...और कविता जब स्ययम उपस्थित होती है ....तब शब्द-शब्द ,भाव-भाव ....जी उठते हैं ..........आप आदरणीय वरिष्ठ जानो के समक्ष खुलेमन से अपने विचार रखने का दुसाहस करता हूँ ... अल्प समय में ही मुझे यह विश्वास हो गया है की .....हमारा सम्मानित मंच वैचारिक रूप से बहुत ही समृद्ध ...संवेदनशील है ..........आप सभी को ह्रदय की पूर्ण श्रद्धा से शत-शत नमन ........सादर ....
आदरणीय संध्या जी ने कितनी सुन्दर ,सार्थक बात कही ..."दर असल ये मार्मिक घटनाएं शब्दों से परे हैं .....गहराई से इनका एहसास तन और मन की चूलें हिला कर रख सकता है .....और ये एहसास जब सचमुच हमारे हर कोश में जा कर जड़ें जमायें ...तब जो शब्द फूटेगें तब वो शायद इन घटनाओं के थोड़ा समीप आ सकें "....निःसंदेह तब जो कविता उत्पन्न होगी वह ...वह क्षणिक प्रयास भर न हो कर कालातीत होगी ...नमन आदरणीय संध्या जी के इन सुन्दर विचारों को .......
आदरणीय सपन सर ने सहज ही गंभीर सत्य कह दिया " यह संवेदनशीलता और निष्ठा और कर्तव्य परायणता नहीं होती ... बस लिखने के लिए लिखना अनावश्यक है ..." सच है ...लिखना बाध्यता नहीं होना चाहिए ...न ही प्रयास मात्र .....रचना को अपने अंतस में भ्रमण करने लिए अवसर देना आवश्यक है ...जिससे की संवेदनात्मक बोध लिये ... उचित शब्द आवरण में .....भावों की गहनता के साथ ....कविता स्ययम प्रस्तुत होने को आतुर हो उठे ...और कविता जब स्ययम उपस्थित होती है ....तब शब्द-शब्द ,भाव-भाव ....जी उठते हैं ..........आप आदरणीय वरिष्ठ जानो के समक्ष खुलेमन से अपने विचार रखने का दुसाहस करता हूँ ... अल्प समय में ही मुझे यह विश्वास हो गया है की .....हमारा सम्मानित मंच वैचारिक रूप से बहुत ही समृद्ध ...संवेदनशील है ..........आप सभी को ह्रदय की पूर्ण श्रद्धा से शत-शत नमन ........सादर ....
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