poetry by kavi chavi

Thursday, January 10, 2013

आदरणीय निशा जी ...निसंदेह यथार्थ जब इस रूप में हमारे सामने हो तो कवी मन पीड़ा को गाता है ...पाठक अपनी संवेदनाओं में उस पीड़ा को पाता  हैं ....रचना और प्रतिक्रिया दोनों ही भावुक हो उठती हैं ......जिस प्रकार यह रचना अपूर्ण  रही ....यह कटु यथार्थ भी अब विश्राम ले ....हर मनुष्य संपन्न ,सामर्थ्यशील ,संभावनाओं से भरा हो तो जीवन कितना सुन्दर हो जायेगा ...है ना ....आपकी गंभीर उपस्थिति सदैव ही रचना /रचनाकार का मान बढ़ा  जाती है ......ह्रदय से धन्यवाद ..........सादर ...

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